अपच/अजीर्ण
(Indigestion/Dyspepsia)
लक्षण :- भूख न लगना, बिना पचा भोजन मल के रूप में निकल जाना, खट्टी मीठी डकार आना, जी मिचलाना, खाने में अरुचि, गले एवं हृदय प्रदेश में जलन (Heart Burn), वायु का बनना रुकना या बार-बार निकलना, दुर्गन्ध युक्त श्वास-प्रश्वास, थोड़ा-सा खाते ही पेट भरा-भरा-सा लगना, पेट दर्द, उल्टी, जीभ पर मैल जम जाना।
कारण :- भूख से अधिक भोजन करना, जल्दी जल्दी भोजन करना या
ठीक से न चबाना, गरिष्ठ व तैलीय भोजन लेना, बासी एवं सड़े गले खाद्य, नींद पूरी न लेना, भोजन करने के तुरंत बाद काम में लग जाना, भय, चिंता, ईर्ष्या, क्रोध, तनाव, भोजन के साथ-साथ पानी पीना, चाय, कॉफी, साफ्ट ड्रिंक्स, शराब इत्यादि का अधिक सेवन, धूम्रपान, वक्त बेवक्त भोजन करना एवं बेमेल भोजन करना, श्रम का अभाव।
उपचार :- उपरोक्त कारणों को दूर करें। एक से तीन दिन तक रसाहार
(पानी, नींबू पानी, नारियल पानी, संतरा, अनानास, अनार आदि फलों का रस एवं सब्जियों का रस) पर उपवास करें। उसके बाद कुछ दिन फलाहार लेकर सामान्य आहार पर आ जायें जिसमें फल, सब्जी, अंकुरित इत्यादि की भरपूर मात्रा रहे। टमाटर का रस लें। मेथी का सूप लें। पत्ता गोभी का सलाद लें। खाना खाने से आधा घंटा पहले पानी पीयें।
तली भुनी, मिर्च मसाले, मिठाइयाँ, चीनी, मैदा इत्यादि का सेवन न करें।
जब भी लगे कि भूख नहीं है तो एक या दो समय का भोजन छोड़ दें।
केवल दो समय भोजन करें।
बार-बार खाने की आदत का त्याग करें। सदैव भूख से थोड़ा कम खायें। भोजन के बाद सौंफ खायें। भोजन के तुरंत बाद पेशाब करें एवं वज्रासन में बैठे।
पाचन शक्ति की वृद्धि के लिए तुलसी के पत्ते या पुदीने के पत्ते पीसकर पानी में घोलकर पियें।
पेट पर मिट्टी पट्टी, एनीमा, कटिस्नान, कुंजल एवं जलनेति करें।
योगमुद्रासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, सर्वांगासान, उत्तानपादासन, सुप्त पवनमुक्तासन, वज्रासन, चक्रासन, भुजंगासन, शवासन करें।
योग मुद्रा, कपालभाति, लोम अनुलोम, उज्जायी, प्राणायाम करें।