गले के रोग (Throat Diseases) 

गले के रोग (Throat Diseases) 

लक्षण : गले में रुकावट, भारीपन, साँस लेने में कठिनाई, ज्वर, सिरदर्द, थकावट, आवाज का बैठ जाना। 

कारण :- दूषित वायु एवं पानी, अधिक खट्टे बासी एवं ठंडे खाद्यों का सेवन, धाइराइड या पैराधाइराइड ग्रंथि में उत्पन्न दोष, अधिक बोलना, उत्तेजक पदाथाँ तथा मिर्च-मसालों का अत्यधिक सेवन, तैलीय भोजन के बाद तुरंत ठंडे पानी का सेवन इत्यादि। 

उपचार :- आवश्यकतानुसार एक दो दिन का रसाहार पर उपवास, अनानास, पपीता, सेब, अंजीर, शहतूत, मेथी, लहसुन का सेवन करें। 

अंगूर कंठस्वर को उत्तम करता है। 

गले की खराश में तुलसी और अदरक का रस शहद में मिलाकर चाटें। 

गला बैठ जाए या सूज जाए तो ताजा पानी में नींबू निचोड़कर गरारे करने से लाभ होता है। 

मेथी दाने के काढ़े से गरारे करने से छाले ठीक हो जाते हैं। 

गले के रोगों में मिट्टी की गर्म पट्टी गले के चारों तरफ बाँधे, साथ में उपवास एवं एनीमा भी करें। 

यदि निगलने में दर्द होता हो तो सूर्यतप्त नीली बोतल के पानी से गरारे करें। गले का गर्म ठंडा सेंक करें। 

ज्यादा बोलने से गला दुखने लगता है, उस समय तुलसी रस शहद मिलाकर चाटें। 

जोर से चिल्लाकर भाषण देने की वजह से गला बैठ जाए तो सूखे अंजीर को पानी में उबाल कर उस पानी के गरारे करें। 

त्रिफला चूर्ण लेकर ऊपर से दूध पी लें। 

अँगूठे और तर्जनी उँगली के बीच मालिश करें। 

सिंहासन, सूर्यनमस्कार लाभदायक है। 

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