मूत्र-पथ संक्रमण
(Urinary Tract Infection)
लक्षण : रात के समय बार-बार मूत्र त्याग की आवश्यकता, मूत्र त्याग करते समय दर्द या जलन होना, पेशाब में पस या रक्तकण, ज्वर, कमर दर्द, उल्टी इत्यादि। मूत्रीय पथ के रोग की वजह से योनि रोग भी हो जाते हैं।
कारण:- मूत्रवेग को रोकना, पौरुष ग्रंथि का बढ़ना, पथरी, गुर्दा रोग, चोट, जननांग में सफाई की कमी. मधुमेह। पानी कम पीना।
उपचार :- दो तीन दिन तक उपवास रखने और पर्याप्त मात्रा में रसाहार का सेवन करने से संक्रमण दूर हो जायेगा।
खीरे का रस बहुत उपयोगी है। मूली के पत्तों का रस, पालक का रस एवं नारियल पानी बराबर मात्रा में मिलाकर लें।
कच्चे नारियल का पानी, जौ का पानी, हरा धनिया का पानी, फटे दूध का पानी, छाछ का अधिकाधिक मात्रा में सेवन करें तथा पर्याप्त मात्रा में पानी पीयें।
कुछ दिन तक अपक्वाहार लें तथा नमक न लें।
काले तिल और शहद एक-एक चम्मच मिलाकर दिन में तीन बार खाएँ। तुलसी की पत्तियों का सेवन करें। नीम की पत्तियों का भी सेवन करें।
एनिमा, पेडू पर गीली पट्टी, सोने से पहले पन्द्रह बीस मिनट का
कटिस्नान।
संक्रमित स्थान पर गीली पट्टी इस विधि से की जा सकती है-सोते समय जाधियाँ (Underwear) गीला करके पहन लें। उसके ऊपर सूखा जांघिया पहन लें। उसके ऊपर अपने सोने के कपड़े पहन लें।
खुली हवा में भ्रमण करें तथा गहरी सांस लें।
भोजन करने के पश्चात् मूत्र त्याग अवश्य करना चाहिए इससे मूत्र विकार नहीं होते।