
मोटापा (Obesity)
शरीर में अधिक चर्बी के संचय होने का नाम मोटापा है। यह अपने आप में कोई बीमारी नहीं है किन्तु यह बहुत-सी बीमारियों का द्वार खोल देता है. जैसे-मधुमेह, रक्तचाप, हृदयरोग, अल्सर, लकवा, चर्मरोग, अनिद्रा, गठिया, दमा, बांझपन, नपुंसकता इत्यादि।
कारण :- अधिक भोजन करना, आलस्य एवं अधिक निद्रा,
शारीरिक व्यायाम का अभाव एवं बैठे रहने की आदत, अधिक चिकनाई युक्त भोजन, मैदा, मिठाई, नमकीन, तली-भुनी हुई चीजों का अधिक प्रयोग, मदिरा, धूम्रपान, चाय, कॉफी, पान, तम्बाकू आदि का सेवन, तनाव, वंशज (Hereditary), अंत: स्रावी ग्रंथियों (Endocrine Glands) का विकार तथा औषधियों का प्रयोग।
उपचार :- भोजन धीरे-धीरे घटाते हुए कुछ दिन यथाशक्ति रसाहार पर रहें, फिर आवश्यकतानुसार कुछ दिन अपक्वाहार पर रहें।
बाद में सामान्य आहार पर आने पर चोकर समेत आटे की रोटी, उबली सब्जी लें। मक्खन निकली छाछ लें। भरप्र फल, सलाद, अंकुरित लेना जारी रखें। भरपूर पानी पियें। प्रातः खाली पेट गुनगुने पानी में नींबू का रस डालकर पीना। भोजन को इतना चबायें कि मुँह में ही पानी हो जाएँ। घी, मिठाईयाँ, तली भुनी चीजों का परहेज रखें। भोजन के उपरांत मूत्रत्याग अवश्य करें। रात को त्रिफला लें। दिन भर में 10-12 गिलास पानी पीयें।
प्रतिदिन एक गिलास पानी तुलसी रस मिलाकर लें। पेट पर मिट्टी पट्टी, पेट का गर्म ठंडा सेंक, एनिमा, कटिस्नान, कुंजल, भाप स्नान, पेट की लपेट, साप्ताहिक गीली चादर लपेट, शंख प्रक्षालन, सूर्यस्नान, गर्म पादस्नान, सूखा घर्षण करें। गर्म पानी के टब में नमक डालकर बैठें।
सूर्यतप्त नारंगी बोतल का पानी पियें। प्रातः गहरी साँस लेते हुए भ्रमण करें और दो मिनट खूब ठहाके लगायें।
प्रातः और सायं साईकल की तरह हाथ-पैरों को चलायें। सूर्य मुद्रा करें।
पश्चिमोत्तानासन, पवनमुक्तासन, भुजंगासन, शलभासन, कटि चक्रासन,
वज्रासन करें। उड्डियान बंध, मूलबंध लगायें।
श्वास प्रश्वास क्रिया बहुत महत्वपूर्ण है।
अग्निसार क्रिया और कपालभाति प्रणायाम करें।