सफ़ेद दाग (Leucoderma)

सफ़ेद दाग (Leucoderma)

यह कोई रोग नहीं है बल्कि त्वचा की अस्वस्थता है। त्वचा में मेलानीन द्रव्य (Melanin Pigment) की कमी हो जाने से त्वचा का रंग सफेद हो जाता है। सफेद दाग सम्पर्क से नहीं फैलता है और यह खानदानी (Hereditary) भी नहीं है। इसमें कोई शारीरिक तकलीफ जलन, खुजली इत्यादि नहीं होती है। सिर्फ दाग ही रहते हैं जिनकी कुरूपता की वजह से रोगी को मानसिक तनाव बना रहता है एवं हीनता की भावना से ग्रसित रहने लगता है।

सफेद दाग असाध्य नहीं है। अतः किसी भी प्रकार की हीन भावना से ग्रस्त या निराश नहीं होना चाहिए। दाग कम होने पर बड़ी आसानी से कम समय में इलाज किया जा सकता है और उसको बढ़ने से रोका जा सकता है अन्यथा कुछ महीनों से लेकर कुछ साल तक लग जाते हैं।

लक्षण :- शरीर के किसी भी भाग में त्वचा पर छोटा-सा दाग पीले रंग से शुरू होकर सफेद रंग का दाग बन जाता है जो जगह-जगह फैलते हुए बड़े-बड़े चकतों (Patches) का रूप ले लेते हैं।

कारण :- बेमेल भोजन का सेवन, आँतों में कीडे, पेचिश, कब्ज, पाचन संस्थान के रोग, चर्मरोगों की प्रतिक्रिया एवं चर्मरोग दबाने के लिए दवाओं का दुष्प्रभाव, टायफाइड इत्यादि में शक्तिशाली एन्टीबायोटिक एवं तेज औषधियों की प्रक्रिया। घटिया किस्म की बिन्दी, ब्लीचिंग जैसे सौन्दर्य प्रसाधनों का दुष्प्रभाव, कृत्रिम वस्त्रों (Synthetic Clothes) का अधिक प्रयोग. नशा, मिलावटी खाद्य सामग्री, अधिक नमक-मिर्च मसालों का प्रयोग, हार्मोन की गड़बड़ी, गहरा दुख या मानसिक आघात, प्राकृतिक वेग (वमन, मलमूत्र इत्यादि) को रोकना, तपेदिक, दमा, एक्जिमा, मधुमेह, लीवर संबंधी शिकायत का रहना, फोड़े, चोट या जलना इत्यादि ।

उपचार :- सर्वप्रथम कुछ दिन तक फलों एवं सब्जियों के रस पर रहें। तत्पश्चात् एक-दो वर्ष तक अपक्वाहार (Uncooked Food) फल, सब्जियाँ, अंकुरित अन्न इत्यादि लें। पन्द्रह दिन में एक बार रसों पर उपवास को दोहराते रहें।

गाजर, चुकन्दर, भिगोया या अंकुरित काला चना, अंजीर, खजूर, तुलसी के पत्ते, त्रिफला थोड़ी हल्दी मिलाकर, नीम की पत्तियाँ विशेष उपयोगी हैं। रात को तांबे के बर्तन में रखा पानी अवश्य पियें।

चाय, कॉफी, चीनी, नमक, मिर्च मसाले, डिब्बा बंद, बोतल बंद खाद्य. नशीली वस्तुयें, माँस, अंड़ा इत्यादि का प्रयोग न करें। इसमें सबसे महत्वपूर्ण पाचन संस्थान की सफाई है। उसके लिए पेट पर

मिट्टी की पट्टी. एनीमा, कटिस्नान, कुंजल, वाष्प स्नान प्रतिदिन कुछ दिनों

तक लगातार करें। उसके बाद धीरे-धीरे कम करते चले जायें। नींबू का रस

मिला पानी या नीम का पानी का एनीमा विशेष लाभकारी है। गेहूँ के जवारे का रस प्रतिदिन प्रातः एवं सायं सेवन करें।

एक छोटा चम्मच बावची का चूर्ण प्रातः एवं सायं पानी के साथ सेवन करना विशेष हितकर है।

सूर्यतप्त हरे तेल की मालिश एवं सूर्यतप्त हरा पानी का सेवन भी लाभप्रद है। धूप स्नान अवश्य लेना चाहिए।

दागों पर तुलसी का रस मलते रहने से कुछ समय में दाग मिट जाते हैं।

एक सप्ताह पुराने स्वमूत्र की धूप में बैठकर 5-10 मिनट तक लगातार

मालिश करने से भी कुछ माह में दाग जड़ से समाप्त हो जाते हैं।

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