
साइनोसाइटिस (Sinusitis)
लक्षण :- नाक की जड़ के पास की हड्डियों के ढ़ांचे में जो छिद्र (Sinus) होते हैं उनमें सूजन हो जाना जिसके कारण आवाज भारी होना, स्वास व गंध ग्रहण करने में अंतर आना, सिरदर्द, जल्दी जल्दी, जुकाम, कभी कभी बुखार, नाक के भीतर माँस बढ़ जाना, नाक से पानी आना, साँस लेने में रुकावट, साइनस भाग में दर्द इत्यादि।
कारण :- अनुचित आहार विहार, कब्ज, दूँस-दूँस कर भोजन करना, ठंडे खाद्य पदार्थों का सेवन, शारीरिक मानसिक एवं भावनात्मक तनाव, कुछ विशेष आहार व धूल मिट्टी से एलर्जी, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का असंतुलन, लीवर के रोग, पशुजनित दूध व दूध से बने खाद्यों का अधिक प्रयोग।
नाक, मुँह, मसूड़े, गले में किसी प्रकार का रोग लग जाए तो उसे भी साइनोसाइटिस हो सकता है।
साइनोसाइटिस के कारण आँख कान के रोग, मस्तिष्कावरण सूजन, मस्तिष्क और फेफड़ों में फोड़ा, श्वा सनली प्रदाह, स्वरयंत्र सूजन भी हो सकते हैं।
उपचार :- नींबू पानी और रस पर कुछ दिन उपवास करें। खीरे का रस,
गाजर व चुकन्दर का रस बहुत लाभदायक है। कुछ दिन केला छोड़कर अपक्वाहार करें। फिर सामान्य आहार पर आ जायें। गरिष्ठ भोजन चिकनाई युक्त, तली भुनी, मिर्च मसालों से परहेज रखें। विटामिन ए एवं सी प्रधान भोजन लें। प्याज और लहसुन खायें। सलाद लें। पशुजनित दूध की बजाय सोयाबीन, तिल या नारियल का दूध’ लें। सफेद चीनी और नमक सबसे बड़े दुश्मन हैं।
पेट पर मिट्टी पट्टी, एनिमा, जलनेति, सूत्रनेति, गर्मपाद स्नान, नाक का गर्म ठंडा सेंक, चेहरे पर प्रतिदिन दो बार भाप देना, सूखा घर्षण करें। पूरी नींद, विश्राम एवं ताजी हवा बहुत आवश्यक है।
नाक में बादाम का तेल या सरसों का तेल डालें।
अनुलोम विलोम, सूर्यभेदी प्राणायाम, विपरीतकरणी, भुजंगासन, योगमुद्रा, शवासन लाभकारी है।
अँगुली व अँगूठे के सिरों पर दबाब डालें।